وطن پال او نور ګټور شعرونه
زخمي احساس
Adil watanmal
18.10.2004
===========================[color=yellow:7bcc693eaf]زيرى[/color:7bcc693eaf]
جانانه زيري مي درباندي ازادي راغله
--------------------------------------ښكلي كابل ته مو غربي ديموكراسي راغله
نړيوال ځواك تري د تروريزم جرړي وايستلي
--------------------------------------پګړي شوي وركي او پر ځاي نكټايي راغله
كټ مټ د ثور انقلاب دي راشه ويي ګوره
--------------------------------------د سرو ځوانيو او شنو سترو پريماني راغله
په ښار كي ګرځي د لندن او د جرمن ځواكونه
--------------------------------------ورسره خواكي د راوا انقلابي راغله
ميخاني ګرمي شوي زاهد اوملا كډه وكړه
--------------------------------------محراب هم وران شو چې قوه ئي هوايي راغله
كه درباريانو كه قلم وال كه مداحان وګوري
--------------------------------------واړه خوشال دي وايي بيا ظاهر شاهي راغله
له سپيرو سمڅو مسافري څيري بيرته راغلي
--------------------------------------صليب كامياب شو چې له غربه رڼائې راغله
ډش او كيبل سينماګاني د شپي نايټ كلبونو
--------------------------------------ټوله آباد شول چې دا نوي پاليسي راغله
په موسسو په پوهنتونو او دولتي شعبو كې
--------------------------------------غاړه غړي شول ښځې نر چې قارقولي راغله
نه د ډالر نه يورو او نه د روبلو كمي
-------------------------------------هر څه پريمانه هر څه په داودي ارنائى راغله
خاوره ارزانه وينه مفته د افغان د بچو
-------------------------------------دي سخاوت كي عجيبه غوندي سيالي راغله
خو داد سر خلك بيا خداى سته په ښه بيه غواړي
--------------------------------------له دي امله په دي برخه كښي قحطي راغله
عجب منظر دي خوكه پاته شي په دغه حالت
--------------------------------------چا ويل بيا د افغانانو نا خوښي راغله
ديموكراتانو ورته دود كړي سپيلني د نظر
---------------------------------------فكر ته ړنګه بنګه ورانه شوروي راغله
مونږ كم بختان يو وخت ددا ډول مزو نلرو
-------------------------------------دري ځله مخكي هم وطن ته انګليسي راغله
خو د بابا او د ملا او ارتجاع قواوي
--------------------------------------ورته راوړاندي شوي واي دا څه خركوسي راغله
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----------------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
------------------------------------------عادل وطنمل
راغلي يرغلګر
Adil watanmal
18.10.2004
))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))[color=yellow:000ef8b0d1]راغلي يرغلګر[/color:000ef8b0d1]
------------------راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي------------------
------------------غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي--------------------
شپيلي د انقلاب مې چې دنيا ته غږوله
شپيلي راځني وړي د خطر زنګ راځني وړي
راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي
غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي
--------------------------------------ډيوي د خپل واكي ته مي چې هر طالب ستي شو
--------------------------------------ډيوه مي وژني وژني او پتنګ راځني وړي
--------------------------------------راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي
--------------------------------------غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي
جهاد د ازادي مي چې د صلحي نظام راوړو
نن صلحه رانه وژني هغه جنګ راځني وړي
راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي
غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي
----------------------------------------د غرب د لنډغرو په څير زما ملاله غواړي
----------------------------------------پڼوني رانه وړي او هم لونګ راځني وړي
----------------------------------------راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي
----------------------------------------غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي
غازي ياغي ولس مي په پلمو پلمو رانيسي
هم توره رانه اخلي همي شرنګ راځني وړي
راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي
غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي
----------------------------------------چې ما پري كنډواله كړه هغه د سري ماڼي برچونه
----------------------------------------د سپيني ماڼي ځوي هغه كلنګ راځني وړي
----------------------------------------راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي
----------------------------------------غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي
احساس د حريت مي چا په زور رانه يوو نه وړو
انګريز ئې اوس په چل او په نيرنګ راځني وړي
راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي
غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي
----------------------راغلي يرغلګر دي خپل فرهنك راځني وړي------------------
-----------------------غليم دي راليږلي نوم او ننګ راځني وړي--------------------
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---------------------------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
---------------------------------------------------------عادل وطنمل
Adil watanmal
19.10.2004
----------------------------------[color=darkred:bfd696e4cf]شك[/color:bfd696e4cf]
د حال مي نه كوي پوښتنه بي وفا خو نه ئې
-------------------------------------زړه كې مي شك شواى جانانه د بل چا خو نه ئې
بيا دي تمديد كړو په ما خوار د ديدنونو بنديز
-------------------------------------په زړه ظالمه رحم وكړه امريكا خو نه ئې
د غمازانو په لمسون مي ولي ته زوروي
-------------------------------------څه د ملګرو ملتو وروسته دستګاه خو نه ئې
د نن سبا په دي سپيرو وعدو مي مه غولوه
-------------------------------------د لنډ مهالي اداري د مير وينا خونه ئې
هره ورځ نوي ياراني كړي او زاړه هم پالي
--------------------------------------نو داسي مه كړه د نظار عالي شورى خونه ئي
ته مي د ډير عمر اشنائ اوس مي مه هيروه
-------------------------------------په پاخه عمر چا غلط كړي ظاهر شاه خو نه ئې
يو په ما ګران ئي نور د خداى كه څوك په يوه سينټ واخلي
-------------------------------------څه اسامه محمد عمر او دادالا خو نه ئې
اخ چي مي نه اوري فرياد نو زه به څه وكړمه
------------------------------------هاي په زړه سخته بي پروا توره بلا خو نه ئي
د افغاني د سترګو اوښكي درته وچي شولي
-------------------------------------اوس به د زړه ويني توومه په ژړا خو نه ئي
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--------------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
------------------------------------------عادل وطنمل
Adil watanmal
23.10.2004
)))))))))))))))))))))))))))))))))))))))) [color=darkred:e337da83a5]ياري او وفا[/color:e337da83a5]
=============ياري اسانه ده جانانه د وفا لانجه ده==============
=============نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده=============
ستا جدايي په زړه نري كړمه د سترګو توره
غرمه به تيره په ژړا شي د بيګا لانجه ده
نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
........................................زما د ګراني مور پڼوني أي محبوبي خاوري
........................................پرمخ دي تښتي دښمنان خو د فضا لانجه ده
.........................................نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
نن دي سينه كې د يوي سجدي ځاي هم نلرو
د خپلواكي محراب شهيد شو د ملا لانجه ده
نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
.........................................يو خوا غرور د پښتانه بل خوا تخنيك د كافر
.........................................عجيبه ستره معركه ده د دنيا لانجه ده
.........................................نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
د نړۍ ټول يرغلګران چي نن يو شوي راته
د پخواني ګزار كسات دي د بابا لانجه ده
نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
.......................................نور د ورينداري په پڼوني جګړه مه اوږدوي
.......................................پردي پري ولي خبروي دا زما او ستا لانجه ده
.......................................نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
خوږو ډالرو د قلم خاوندان هم واخيستل
هر څه خرڅيږي خو يوازي د تقوى لانجه ده
نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
.......................................يا په زړه لوي يي أي نرګرسه يا بيزړه غوندي يي
.......................................ولي پوهيږي نه چې دا ستا د بقى لانجه ده
.......................................نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده
=============ياري اسانه ده جانانه د وفا لانجه ده==============
=============نن خو تيريږي مسافره د سبا لانجه ده=============
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---------------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
-----------------------------------------عادل وطنمل
Adil watanmal
02.11.2004
||||||||||||||||||||جاسوس
پنځه روپو لپاره ګټي د وطن خرڅوي
----------------------------------داخو جاسوس دي چې د پلار نيكه مدفن خرڅوي
سترګې يې خړې سريې ټېټ د بل په وره كې ولاړ
-----------------------------------خپله حيا هم په سهار هم ماسخوتن خرڅوي
غيرت خو څه كوي ايمان او جذبه مه پوښته تري
------------------------------------هم شخصيت خپل خرڅوي او هم خپل فن خرڅوي
چې په ظاهر يې غلط نه شي منځ يې ټول مټاك وي
------------------------------------د عقيدي په شمول هر څه په ثمن خرڅوي
زه نه پوهيږم د وجدان قاضي ته څه به وايي
------------------------------------ولې د پلار هډونه ولې خپل ګلش خرڅوي
خداي خو وركړي شخصيت خو پرده څه شوي دي
------------------------------------لكه متاع يې په بازار كي په هر تن هرڅوي
مښوكه څنډي قسم خوري چې هيڅ يې نه دي كړي
-------------------------------------دا كه د باغ كلونه ريبي او سوسن خرڅوي
--------------------په ظاهر سپين په باتن تور له خدايه وشرميږه---------------
--------------------كله ايمان څوك په بتپال او برهمن خرڅوي------------------
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د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
عادل وطنمل
هيواد شېرزاد
02.11.2004
محترم عادل وطمنل صېب، سلامونه مې ومنئ. خدای مو روغ او جوړ راته لره.
ډير ښکلي شعرونه مو ليکلي، مګر د دې وروستيو شعرونو د شاعر نوم مو نه دی ذکر کړی. که د شاعر نوم وراظافه کړئ نو به ډېره ښه شي.
Adil watanmal
04.11.2004
هيواد شيرزاد وروره په پنډو سلامونه مې قبول كړه.
د عزت وړه د شعرونو سره خو مي د شاعرانو نومونه ځكه نه دي ذكر كړي چې راته معلوم نه وه او هغه داسي چې د زيري او شك تر عنوان لاندي شعرونه مې يو وخت د يومجلي څخه په خپله ډايري كي ليكلي وه چې د مجلي والا هم د شاعر نوم نوه په ګوته كړي او پاتي شو د جاسوس په نامه شعر وروره دا مي د سهار په ورځ پاڼه كې لوستي او هغه لته ئې د شعر په سر كي دمره ليكلي وه د فايض له قلمه نور نو نه معلوميده چې شعر د چا دي.
همدارنګي دانور شعر ونه كه ريښتيا درته ووايم نو يو ځاي په سفر روان وم او د موټر خاوند راته وويل كه اجازه دي وي نو يو څه به واورو ما ورته وويل چې ښه نو روژه وه بس چې كيسټ ئې ټايپ ته ورواچوله نو د فقير محمد درويش په اواز دغه شعر ونه پكي وه نو د موټر خاوند كيسټ نه راكوله نو بيا مي د خپل بيګ څخه وړوكې ټايپ را وه ايستلو او دغه شعرونه مې ترينه ريكارډ كړه او چې كله له سفره راستون شوم نو په كمپيوټر كې مي وليكل چې ورسته مې بيا د لوستلو لپاره په ټول افغان كې هم واچول. خو زه به بيا هم پوښتنه پسي وكړم كه د شاعرانو نومونه راته معلوم شول نو ضرور به ئې ور اضافه كړم.
-----------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
---------------------------------------عادل وطنمل
Adil watanmal
06.11.2004
===================ديموكراسي====================
---------------------------------------ډاكټر عبد الحليم برسات
افغاني ملي دودونه دي ماتيږي
------------------------------ازادي په نوم نسلونه دي ختميږي
عجيبه غوندي فساد مو كورته راغي
-------------------------------د نيكيو كاروانونه دي كوچيږي
مټې لوڅې مخ ښكاره كړه ازادي ده
-------------------------------ډير بې شميره اعلانونه دي خپريږي
لوپټه، حجاب، د سمال لويه كناه ده
-------------------------------د حيانه ډك مخونه دي لوڅيږي
واه واه څه ديموكراسي راغله وطن ته
-------------------------------هرې خوا ته شعارونه دي ځليږي
نه خو نوم د نر څوك اخلي نه ئې پروا كړي
--------------------------------په خوارانو نه ټول جيلونه دي ډكيږي
هر سړي په غم ككړ شو خپل كاله كښي
---------------------------------د اغيار په لاس كورونه دي ورانيږي
نر د ښځي، ښځه نر ځني بې زاره
---------------------------------په دي نوم ئې ګريوانونه دي شوكيږي
---------------زه برساته شاهد په دې مرض اخته شم--------------------
------------------هرې خواته دغوتونه دي چليږي----------------------
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-------------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
--------------------------------------عادل وطنمل
Adil watanmal
25.11.2004
))))))))))))))))))))))))غزل
==================== فضل رحيم ساقي
په سپين مخ دى تور كاكل شو ول ول بيا
---------------------عاشقان به شي په وير او زلزل بيا
په نكريزو دى لاس سره كړه تر مړونده
---------------------شي لوګې به شم په شان د خلپل بيا
پوره كړي ده تا كومه وعده خپله
--------------------ماشوم زړه مي غولوي په چل ول بيا
ستا د ليچو پلوشي دى كه د تورو
--------------------له حيرته ورته شومه لل ګل بيا
كه ګذار دى كړم د مچ هسي له پيو
--------------------در روان يم د ميږي په پل پل بيا
د هجران تندي دى داسي ليوني كړم
--------------------فرياد كړم لكه جرس په سول سول بيا
-------ساقي زړه باند لاس كيږده قصي پريږده---------------
--------------لوپټه په سروي د ململ بيا------------
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د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
عادل وطنمل
Adil watanmal
30.11.2004
---د فيل په غوږ كې وده مسلمان ته
---------------زه له ځانه مرور يم له جهانه مرور يم---------------
-------------هغه د فيل غوږ كې وده له مسلمانه مرور يم------------
په ما څه نادودي كيږي دوي نه اوري اوازونه
له پردونه څه ګيله شي د له خپلوانو مرور يم
هغه د فيل غوږ كې وده له مسلمانه مرور يم
---------------------------د دردونو ټكور نه شو لا پر زخم مالګي پاشي
---------------------------هغه د غرب په ميو مست له خپل افغان نه مرور يم
---------------------------هغه د فيل غوږ كې وده له مسلمانه مرور يم
مسافره بخت دي تور دي دا قسمت دي اذلي دي
چي پوره نه شو د سلحي له ارمانه مرور يم
هغه د فيل غوږ كې وده له مسلمانه مرور يم
---------------------------ما وثيق په كاڼو ولي زړه ئې نه راباندي رحميږي
--------------------------د دي هسي ډبل زړي سخت انسان نه مرور يم
-------------------------هغه د فيل غوږ كې وده له مسلمانه مرور يم
---------------زه له ځانه مرور يم له جهانه مرور يم---------------
-------------هغه د فيل غوږ كې وده له مسلمانه مرور يم------------
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د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
عادل وطنمل
Adil watanmal
02.12.2004
===============ګډوډي
-------------------------------- باور
-------جوړه ګډوډي ده د نظام پوښتنه مكوه-------
-------هرچا ته سلام كوه د قام پوښتنه مكوه-------
-------اصل و نسب څه كړي دلايل پكي پكار ندي-------
-------دلته د بادار او د غلام پوښتنه مكوه-------
-------هر سړي قاضي دي قضاوت چاكي پيدا نشو-------
-------دلته قضاوت او د اسلام پوښتنه مكوه-------
-------لاس په سترګه كيږده د ړندو سره ملګري شته-------
-------څه كه درته پيښ شو د انجام پوښتنه مكوه-------
-------كيس د جنايت يې لكه لمر غوندى روښان وي-------
-------خو دلته د مجرم او د بد نام پوښتنه مكوه-------
-------مسجد كه كليسا ده د لته دواړه پيروان لري-------
-------فاسق وي كه فاجر خو د امام پوښتنه مكوه-------
-------غل دي كه عدو( باروه) څوك يي مخه نيوي نشى-------
-------ټول عمر تياره ده د ماښام پوښتنه مكوه. -------
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د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
عادل وطنمل
Adil watanmal
23.12.2004
---------------------------اغزي وختو
-----------------------------------------سپين ګوي
دوي د حلوا په تمه خولي ته كړو اغزي وختو
----------------------------نوي حاكم هم داسي ښكاري چې پردى وختو
دوى د بابا په تمه تمه ورځې شپې سبا كړې
----------------------------بابا چې رغللو ماشوم شولو بچى وختو
ځينې لاوايي چې سياست دى تاسو نه پوهيږئ
----------------------------بابا پخپله سياست پريښود چي كرزي وختو
دوي پرمختګ غوښتلو چې مخ په وړاندي به ځو
----------------------------لاره يې بنده وه له مخه كې غرګى وختو
دوي يې دسرود په تمه له كوره ګډ وو ورته
-----------------------------باجه يې نه غږيده سورى منګي وختو
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د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
عادل وطنمل
Adil watanmal
02.01.2005
===========نه زيږوي
--------------------------عبد القادر الفت
------------زمونږ اختر د اوښكو مور وي خندان نه زيږوي
------------روژه فقيره مو رحمت د يزدان نه زيږوي
------------هر يو بدلون مو فقط كونډي يتيمان زيږوي
------------د ككريو په بدل كي ارمان نه زيږوي
------------مونږ د وينو تويولو په چل ښه پوهيږو
------------ولې زمونږ مينه ليونۍ ده ليلى نه زيږوي
------------مونږ ته رقيب رازيږوي خو جانان نه زيږوي
------------هر يو طبيب چې د دې خوار ملت علاج ته راشي
------------زاړه زخمونه راسپړي خو درمان نه زيږوي
------------زمونږ په برخه رسيدلي آسمان هم شنډ ښكاري
------------دا تورۍ تورۍ وريځي راشي باران نه زيږوي
------------زمونږ فكرونه غلامان شول شا شجاع زيږوي
------------ځكه مو مياندې ابدالي ميرويس خان نه زيږوي
خو بيا
-----------هر حكومت زمونږ زمونږ له خلكو جوړ شي ولې
-----------ټول په شريكه باندې يو نر افغان نه زيږوي
-----------زمونږ الفت د نفرتونو د كاروان سالار وي
----------د الفتونو قافلې ته څاروان نه زيږوي
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د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
عادل وطنمل
Adil watanmal
04.01.2005
---نادان هغه دى
----------تحسين الله تحسين
نادان هغه دى چې د ښمن سره پخلا كرځي
دان پدې وخت كې هميش ورونو په غلا ګرځي
اوس د هوښيار سړي عادت د شوپرك په څير دى
د ورځې نه ګرځي، كه ګرځي يك تنها ګرځي
زما د هغو مشرانو سياست نه خوښيږي
چې له غليم سره بې بغضه په خندا ګرځي
سر به دې ښه اوس پرې خلاص شوى وي غليم راغلى
زما دښمن دى خو له تاسره اشنا ګرځي
پر مايې ټولې ناكردۍ د ژوندون پرينښودې
زه چې له ځانه دفاع وګړمه جفا ګرځي
خير دى راته سياستمدار خو! سياست څه ته وايي
سياست همدا دى چې غليم دې ستا پر شا ګرځي
د خير په ورځ ستا له خيرات او صدقونه قربان
دايې شعار دى چې تاوان ګوري جلا ګرځي
دغه د وخت ماده پرست او پيسه دوست ياران مې
زما نامه هم چيرې نه اخلي جدا ګرځي
ته چې تحسينه ګله دوى نه قرباني وغواړې
ټول به په چيغو درته سر شي چې بلا ګرځي
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---------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
------------------------------------عادل وطنمل
Adil watanmal
10.01.2005
=========د خپلواكي لمر
---------------------محمد اسماعيل سعيد هلمند
>>>>>>>>>په شرنګ د خپلو تورو به جهان ولړزوو
>>>>>>>>>سپين لمر د خپلواكي به پر افغان وځلوو
>>>>>>>>>لاس كي چه مي توره د همت نن راخستلي ده
>>>>>>>>>بيا به دوطنه انګريزان پري ځغلوو
>>>>>>>>>موږ ته ميوندي توري راپاته له پخوا نه ده
>>>>>>>>>خلاص به رانه نشي غليمان به قتلوو
>>>>>>>>>نن موږ ايماني جذبي په جوش راقهرولي يو
>>>>>>>>>ټول كفري رواج او طاغوتيان به ختموو
>>>>>>>>>څوپسي روان يو نوريي نسو پريشود لاي موږ
>>>>>>>>>ځالي دغليم په هر مكان موږ ورانه وو
>>>>>>>>>وايمه سعيد غليم په خړ سيلاب لاهو دي نور
>>>>>>>>>بيا د افغاني همت طوفان پري راولو
---------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
-------------------------------------عادل وطنمل
Adil watanmal
10.01.2005
----------------شمله وره اشنا
--------------------------------محمد يونس نسيم
سترګي دي زارشمه راځي چه له سنګره اشنا
--------------------------------د ميوندي ملالي وروره شمله وره اشنا
د مخ ګردونه به دي پريمنځم په اوښكو باندي
-------------------------------- سترګي پرمځكه يم كتونكي له ګودره اشنا
د همت چيغي دي پر كفر زلزله راوسته
------------------------------ودادښكلي كاروان ميره او رهبره اشنا
څښتن دي وكړي چه بيا زمونږ خواته قدم اوچت كړي
------------------------------وه د زړه سر دسترګو توره بختوره اشنا
ته دي سر لوړي يي سيالانو كي د سروي په شان
------------------------------شي په امان له كړاوونو او خطره اشنا
----------د ازاد اسلامي افغانستان په هيله
----------------------------------عادل وطنمل